खेती में गाय और केंचुए को लेकर चल रही है खींचतान

कपड़े का मशहूर ब्रांड गैप समाज और कारोबार में बढ़त पाने की खातिर गोबर पर आधारित प्राकृतिक खेती का समर्थन कर रहा है। यही वजह है कि भारत में गायों की संख्या कम होने से गैप चिंतित है।

इस ब्रांड का ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती के समर्थकों से वैचारिक टकराव चल रहा है। कंपनी का मानना है कि अगर उसे अपने ब्रांड के लिए समाज में एक निश्चित मुकाम दिलानी है तो इसका सबसे बढ़िया तरीका है कि प्राकृतिक खेती का समर्थन किया जाए। इस तरह की खेती के लिए गाय का गोबर और गोमूत्र बहुत ही जरूरी तत्त्व हैं।

उत्तर भारत में भैंस के दूध की ज्यादा कीमत मिलने से और जैविक खाद के लिए सब्सिडी के अभाव ने देश के उत्तरी इलाकों में गायों की आबादी को घटाने में बड़ी भूमिका निभाई है। गैप को उम्मीद है कि उसे पर्याप्त संख्या में गायें मिल जाएंगी और भविष्य के ब्रांड की खातिर उसके कपास के किसानों को गोबर वाली खाद मिल जाएगी।

इसका कहना है कि कर्ज के बोझ और उर्वरक की ऊंची लागत की वजह से आत्महत्या के लिए मजबूर होने वाले कपास किसानों को राहत पहुंचाना उसका मुख्य मकसद है। गैप की ग्लोबल पार्टनरशिप डायरेक्टर लक्ष्मी मेनन भाटिया कहती हैं - जीरो बजट फार्मिंग के जरिये कपास उगाने में मदद देकर हम इसे रोकना चाहते हैं, ऐसी खेती के लिए मुख्य इनपुट गाय के गोबर से बनी खाद होगी।

पिछले महीने कंपनी को प्राकृतिक खेती के गुरु सुभाष पालेकर की सेवाएं मिलीं। पालेकर जीवमूत्र या गाय के गोबर से बनी खाद के इस्तेमाल की बाबत सैकड़ों किसानों को शिक्षित करेंगे। उनका कहना है कि गाय जितनी कम उर्वर होगी, उसके गोबर से बनने वाली खाद उतनी ही बेहतर होगी।

काफी सहज तरीके से वह कहते हैं कि हमारे तौर-तरीके से मिश्रण तैयार कर पौधों में डाल दिया जाए और उसे प्राकृतिक तरीके से बढ़ने दिया जाए, जैसा कि वे जंगल में बिना सिंचाई व बिना खाद के ऐसा करते हैं। लेकिन विदर्भ के किसानों का कहना है कि यह उतना आसान या सस्ता नहीं है, जैसा कि लगता है।

विदर्भ के किसान नेता विजय जयवंतिया कहते हैं - पालेकर से पूछिए कि अमरावती इलाके में प्राकृतिक खेती मशहूर क्यों नहीं है? जयवंतिया का कहना है कि एक ओर जहां रासायनिक उवर्रक के लिए सब्सिडी मुहैया कराई जाती है, वहीं दूसरी ओर गाय पालने या चारे के लिए सब्सिडी सरकार नहीं देती। इसके अलावा इसमें श्रमिक की दरकार होती है जो कि खर्चीला है।

फिलहाल गैप भारत सरकार से गठजोड़ करने के मसले पर काम कर रहा है और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय को इसमें शामिल किया है ताकि मंत्रालय किसानों को प्राकृतिक खेती के विकल्प अपनाने के लिए दबाव डाल सके। गैप दूसरे ब्रांड से समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इस कहानी में एक उलझन भी है।

प्राकृतिक खेती के पालेकर जैसे अगुआ जैविक खेती के समर्थन में खड़े हैं, जो कि वैसे उर्वरक के जरिए किया जाता है जिसका निर्माण केंचुए करते हैं, ये केंचुए जैविक कूड़ा-करकट पर पलते हैं। इस मुद्दे पर आलोचना इस बात की होती है कि जैविक उर्वरक में ह्यूमस का अभाव होता है। ह्यूमस अवक्रमित जैविक पदार्थ है जो कि मिट्टी में मौजूद होता है। यह जमीन को उर्वरा बनाने में मदद करता है और नमी को बरकरार रखता है।

पालेकर कहते हैं कि केंचुए ह्यूमस के निर्माण को रोकते हैं। ये कैडमियम, आर्सेनिक, सीसे और पारे का सेवन करते हैं और कार्बन छोड़ते हैं जो कि जलवायु परिवर्तन के अलावा आपको कैंसर जैसी बीमारी भी देता है। जैविक व प्राकृतिक खेती पर वैश्विक स्तर पर बहस होती रही है। मुख्य विवाद यह है कि एक ओर जहां जैविक खेती में पौधों के लिए मानव के उपयोग की आवश्यकता पर जोर नहीं दिया जाता, वहीं ऐसा विचार प्राकृतिक खेती से केंद्र में होता है।

गोबर और गोमूत्र के इस्तेमाल से उर्वरक व कीटनाशक तैयार करने के साथ-साथ बीजों में सुधार के फॉर्मूले के बारे में पालेकर कई तरीके बताते हैं। उनका कहना है कि सिर्फ एक गाय 30 एकड़ जमीन को उर्वरा बना सकती है। कीड़ों के सामने फेंकने से पहले गाय केगोबर से ह्यूमस बनाया जा सकता है। जैविक खेती की आलोचना करने वाले कहते हैं - जैविक कचरे का सेवन करने वाले कीड़े ह्यूमस के निर्माण को रोक देते हैं।

ये कीड़े वहां मौजूद सभी कैडमियम, आर्सेनिक, सीसे और पारे खा जाते हैं और कार्बन उत्सर्जित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। इसे खतरनाक बताते हुए वे कहते हैं कि उर्वरक में मौजूद कैडमियम केतत्त्व से कैंसर हो सकता है। लेकिन देविंदर शर्मा जैसे कृषि वैज्ञानिक देवेंदर शर्मा इसे खारिज करते हैं। पहले भी मिट्टी में स्वाभाविक रूप से केंचुए होते थे।

वे पूछते हैं कि क्या वे ह्यूमस को रोकते हैं? पालेकर यह अंतर निजी दृष्टिकोण से कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसका कोई मतलब नहीं है और यह गलत है। गाय का गोबर और केंचुआ एक दूसरे के पूरक हैं। उनका कहना है कि जरूरत है वर्मिकंपोस्ट इंडस्ट्री को समाप्त करने की। हमें प्राकृतिक रूप से मौजूद केंचुए और गाय के गोबर पर निर्भर होना चाहिए, न कि हमें इन दोनों का एक दूसरे के खिलाफ उठने वाले विवादों में फंसना चाहिए।

हालांकि गैप ने फैसला किया है कि वह गाय के पक्ष में खड़ी होगी, न कि केंचुए के पक्ष में। पालेकर और उनके समर्थक भी गाय पर ही भरोसा कर रहे हैं, न कि आयातित दूसरे सामान पर। उनका कहना है कि सिर्फ एक गाय के जरिए 30 एकड़ जमीन उपजाऊ बन सकती है। एपेरेल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के जरिए गैप जल्दी ही आपूर्तिकर्ताओं तक पहुंचेगी और दूसरे ब्रांड तक भी।

ऑर्गेनिक उत्पाद को प्रमाणित करने वाली एजेंसी इकोसर्ट के मुताबिक, इस दौड़ में कीड़े काफी आगे हैं और साल 2007-08 में वैश्विक स्तर पर जैविक कपास के उत्पादन में 152 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन के मामले में भारत का स्थान सीरिया के बाद दूसरा है।