माह वार करें सब्जियों की खेती

माह वार करें सब्जियों की खेती

संबंधित महीनों में उगाई जाने वाली सब्जियों का विवरण निम्‍नानुसार है :
माह फसलें
जनवरी
राजमा, शिमला मिर्च, मूली, पालक, बैंगन, चप्‍पन कद्दू
फरवरी
राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, एस्‍पेरेगस, ग्‍वार
मार्च
ग्‍वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिण्‍डी, अरबी
अप्रैल
चौलाई, मूली
मई 
फूलगोभी, बैंगन, प्‍याज, मूली, मिर्च

रासायनिक खाद भूमि की बरबादी कारण

रासायनिक खाद भूमि की बरबादी कारण

खरपतवार की - सनई, रिजका आदि की ऐसी हरी फसलें उगाई और जोतकर जमीन में मिलाई जा सकती हैं जो जमीन की उर्वरा शक्ति की रक्षा करती रह सकें। पशु-धन नष्ट न किया जाय और उसके गोबर को उपले आदि बनाकर नष्ट करने की अपेक्षा यदि खाद्य के रूप में ही उसे पुनः वापिस कर दिया जाय तो यह प्रश्न उत्पन्न ही न होगा कि जमीन कमजोर हो गई और उसकी पैदावार घट गई।

खतरनाक खाद है या हमारी अधकचरी सोच?

खतरनाक खाद है या हमारी अधकचरी सोच?

अज्ञान और अनुदान की सरकारी नीति के कारण नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग हमेशा ज्यादा रहा है। सरकार यूरिया पर सबसे ज्यादा छूट देती है और किसान भी यूरिया ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता है। यही कारण है कि देश में बिकनेवाली समस्त रासायनिक खाद में से आधी मात्रा सिर्फ यूरिया की है। जिसकी वजह से मिट्टी की पोषकता और पर्यावरण को लगातार नुकसान हो रहा है। उदाहरण के लिए, 50 किलो वजन वाले यूरिया के एक थैले में मात्र 23 किलो ही नाइट्रोजन होता है शेष 27 किलो तो राख या फिलर होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइ.सी.ए.आर.) के अध्ययन के अनुसार यूरिया के अकेले और लगातार इस्तेमाल के कारण उत्पादकता घटी है। मिट्टी के क

खेत की तैयारी में छुपा है पौध संरक्षण

वर्ष में अधिकांश खेती का रकबा दो फसली फसल प्रणाली के तहत चलता है कुछ आंशिक क्षेत्र में जायद की फसलों को लगाकर अतिरिक्त आय के साधन की व्यवस्था की जाती है। फसल चाहे कोई भी हो खाद्यान्नों की हो अथवा उद्यानिकी सभी में कीट, रोगों का आक्रमण आम बात है और पौध संरक्षण में बचाव की भूमिका को यदि अधिक महत्व दिया जाये तो एक तीर से दो शिकार सम्भव हो सकेगा। एक तो पौध संरक्षण में कीट/ रोगों के उपचार पर होने वाले व्यय की बचत हो सकेगी। दूसरा कीटनाशकों के उपयोग से होने वाली पर्यावरण की हानि पर भी रोक लग सकेगी।

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