मृदा संरंक्षण

मिट्टी की खाद में नाइट्रोजन की भूमिका

नाइट्रोजन (Nitrogen), भूयाति या नत्रजन एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैसहै तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह सर्वाधिक मात्रा में तत्व के रूप में उपलब्ब्ध पदार्थ भी है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी।

फ़सल अवशेषों ना जलाऐं, इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढाऐं

हमारे देश में फ़सलों के अवशेषों (Crop Residue) का उचित प्रबन्ध करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है या कहें कि इसका उपयोग मृदा में जीवांश पदार्थ अथवा नत्रजन की मात्रा बढाने के लिये नही किया जाकर इनका अधिकतर भाग या तो दूसरे घरेलू उपयोग में किया जाता है या फ़िर इन्हें नष्ट कर दिया जाता है जैसे कि गेहूं, गन्ने की हरी पत्तियां, आलू, मूली, की पत्तियां पशुओं को खिलाने में उपयोग की जाती है या फ़िर फ़ेंक दी जाती हैं। कपास, सनई, अरहर आदि के तने गन्ने की सूखी पत्तियां, धान का पुआल आदि सभी अधिकतर जलाने के काम में उपयोग कर लिये जाते हैं।

मृदा जनित बिमारियों का जैव नियंत्रण -ट्राइकोडर्मा का महत्त्व व उपयोग

Trichoderma

ट्राइकोडर्मा पादप रोग प्रबंधन विशेष तौर पर मृदा जनित बिमारियों के नियंत्रण के लिए बहुत की प्रभावशाली जैविक विधि है। ट्राइकोडर्मा एक कवक (फफूंद) है। यह लगभग सभी प्रकार के कृषि योग्य भूमि में पाया जाता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा - जनित पादप रोगों के नियंत्रण के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

मृदा के प्रकार

सर्वप्रथम १८७९ ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया। भारत की मिट्टियाँ स्थूल रूप से पाँच वर्गो में विभाजित की गई है:

  1. जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी (Alluvial soil),
  2. काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black soil),
  3. लाल मिट्टी (Red soil),
  4. लैटराइट मिट्टी (Laterite) तथा
  5. मरु मिट्टी (desert soil)।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है:

(1) जलोढ़ मिट्टी

(2) काली मिट्टी

(3) लाल एवं पीली मिट्टी

(4) लैटराइट मिट्टी

अत्यधिक नाइट्रोजन से जमीन की उर्वरता पर असर

किसानों द्वारा इस्तेमाल किए गए नाइट्रोजन से पौधे मात्र 30 फीसदी एफ यूरिया का उपयोग करते हैं। फसल की माँग से अधिक उपयोग में लाया गया नाइट्रोजन वाष्पीकरण और निष्टालन के जरिये खत्म हो जाता है। नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग जलवायु परिवर्तन और भूजल प्रदूषण को बढ़ावा देता है। यूरिया जमीन में रिस जाता है तथा नाइट्रोजन से मिलकर नाईट्रासोमाईन बनाता है जिससे दूषित पानी को पीने से कैंसर, रेड ब्लड कणों का कम होना और रसौलियाँ बनती हैं। मुख्य कृषि अधिकारी डॉ.

प्रमुख पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण

प्रमुख  पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण

जीव जगत में जिस तरह से प्रत्येक प्राणी को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्कता होती है, उसी तरह से पौधों को भी अपनी वृद्धि, प्रजनन, तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । इन पोषक तत्वों के उपलब्ध न होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधों की मृत्यु आवश्यम्भावी हो जाती है । पौधे भूमि से जल तथा खनिज-लवण शोषित करके वायु से कार्बन डाई-आक्साइड प्राप्त करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं । फसलों के पौधों को प्राप्त होने वावली कार्बन-डाई-आक्साइड तथा सूर्य के प्रकाश

जैविक मृदा में जैविक खाद का योगदान

जैविक मृदा

● जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है, जिससे लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और मृदा काफी उपजाऊ बनी रहती है।
● जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान कराते हैं, जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों के द्वारा पौधों को मिलते हैं जिससे पौधों स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है।
● रासायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते, टिकाऊ तथा बनाने में आसान होते हैं।
इनके प्रयोग से मृदा में ह्यूमस की बढ़ोतरी होती है व मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है।